एक डूबते हुए आदमी ने
पुल पर चलते हुए आदमी से
आवाज लगाई "बचाओ,बचाओ"
पुल पर चलते आदमी नें नीचे
रस्सी फैंकी ओर कहा "आओ"...
नदी में डूबता हुआ आदमी
रस्सा नहीं पकड पा रहा था
रह रह कर चिल्ला रहा था
"मैं मरना नहीं चाहता"
"जिन्दगी बहुत महगी है"
अरे! कल ही तो एक कंपनी में
मेरी नौकरी लगी है......
इतना सुनते ही पुल पर चलते
आदमी ने अपनी रस्सी खींच ली
ओर भागते भागते उस कंपनी में गया
जाते ही मालिक को बताया कि
एक आदमी अभी अभी डूब कर मर गया है
ओर इस तरह आपकी कंपनी में
एक जगह खाली कर गया है....
मैं बेरोजगार हूं, मुझे रख लो
मालिक बोला, अरे तुमने देर कर दी
अब से कुछ देर पहले
हमने उस आदमी को लगाया है
जो उसे धक्का देकर
तुमसे पहले यहां आया है.......
9 टिप्पणियां:
हा हा हा हा ..... व्यंग्य के साथ एक कड़वी सच्चाई पेश की आपने ...
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
क्या बात है. मजा आ गया. आभार
वाह महाराज कविता भी शुरू कर दी.............. ब धा ई........
बहुत खुब,मजा आ गया जी, लेकिन हकिकत मै ऎसा कभी ना हो.
धन्यवाद
सटीक, देश मे व्याप्त बेरोजगारी पर इससे बेहतर कटाक्ष हो ही नही सकता,चड्डी तो कतई नही।
वाह वाह वत्स जी
क्या खूब रचना
हास्य, व्यंग, करुना, और जीवन की पीड़ा लिए ........
एक ही रचना में इतने सुंदर रंग डालें हैं आपने, बधाई
बधाई और शुभकामनाएं।
आपकी कविता में एक ऐसा व्यंग्य है, जो आज के जमाने की गहरी सच्चाई है। बधाई।
खूब रचना
हास्य, व्यंग, करुना, और जीवन की पीड़ा लिए
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