सुबह का वक्त--घर की छत पर बैठे, पुस्तक पढते हुए सर्दियों की हल्की गुनगुनी धूप का आनन्द लिया जा रहा है. थोडी देर में पुस्तक तो खत्म हो गई, लेकिन चाहने पर भी धूप से उठकर जाने का मन न हुआ. सो, बैठे-बैठे चाय की चुस्कियों के साथ धूप का आनन्द लिया जाने लगा. अब करने को कुछ काम तो था नहीं. दिमाग जरा किताब से हटकर खाली हुआ, तो स्वभाव के अनुसार उसे सोचने की फुर्सत मिली, पर वह सोचे क्या ?
भौं, भौं शब्द नें मस्तिष्क को राह दी, नजर घुमाकर देखा---सामने गली के मोड पर एक मकान की दहलीज में कुत्ता बैठा है और जो कोई भी सडक से गुजरता है, उस पर भौंकने लगता है. भौंकना उसकी आदत जो ठहरी!
अब दिमाग का सोचना कुत्ते से जा मिला. यह क्यों भौंकता है ? इसकी यह आदत क्यों है? आखिर यह कहता क्या है ? सवाल तो बहुत से हैं, पर जवाब तो किसी एक का भी नहीं. कुत्ता मेरी भाषा नहीं जानता कि मुझे बताये और मैं उसकी जुबान नहीं जानता कि उसे समझूँ. दोनों तरफ की इस नासमझी में अन्दाज को खुल के खेलने का अवसर तो मिला, पर अन्दाज भी कुछ नये सवाल पैदा करके ही रह गया.
क्या यह कुत्ता इसलिए भौंकता है कि वो शान्ती के साथ बैठना चाहता है और लोग इधर से उधर गुजरकर उसके 'अमन' में खलल डालते हैं ? या आने-जानें वालों से वो यह खतरा महसूस करता है कि लोग उसके मालिक के घर को लूट लेंगें और इसी लिए वह उन्हे भगाने की खातिर भौंकता है. क्या उसकी निगाह में हर आदमी चोर है? कुत्ता बराबर भौंके जा रहा है----भौं! भौं! भौं! और मैं बराबर सोचे जा रहा हूँ------क्यों, क्यों, क्यों ?
21 टिप्पणियां:
चलिए कुत्ते ने सोचने को मजबूर तो किया. सुबह सुबह का फलसफा.
ला-जवाब……पंडित जी,
हर उत्तर की कल्पना निरुत्तर हो जाती है, विवेक को ही काम लगाना होगा।
शायद्……………
वह आने जाने वालो से शिकायत करता है कि उसके मालिक को मिले बिना अकारण कहां जा रहे हो? इसी खातिर भौंकता है.
कुछ कुत्ते कुत्तियाँ आदत से मजबूर भी होते हैं उनके मालिकों ने उन्हें गुड मैंनेर्स नहीं सिखाये होते !
बहुत चालू हो वत्स साहब, बातों में लगाकर एक पोस्ट और पढ़वा दी, प्रकृति, मानव और विज्ञान जैसे विषय पर।
@ this post:
किसी का कोई कुसूर नहीं है जी, जैसे आप सोचने पर मजबूर हैं, वो भी मजबूर हैं भौं-भौं करने पर। बहुत बार तो सिर्फ़ अपनी उपस्थिति दिखाने के लिये भौं भौं होती है, कि हम भी हैं।
कृपया ध्यान दिया जाए -
यह पोस्ट स्वतः उपजी है, इस पोस्ट का किसी से कोई भी वास्ता नहीं है और सलीम का तो बिलकुल भी नहीं
"वह आने जाने वालो से शिकायत करता है कि उसके मालिक को मिले बिना अकारण कहां जा रहे हो? इसी खातिर भौंकता है."
@हंसराज जी,
अब है तो आखिर कुत्ता ही न..तो समझ भी तो कुत्ते जितनी ही होगी...अगर दिमाग रखता तो समझ न जाता कि कारण तो वो खुद है, जिसकी वजह से कोई उसके मालिक से मिलना नहीं चाहता. हर रह-गुजर कन्नी काट कर निकल जाता है.
जबर्दस्त!!!!!!!!!!!!
पंडित जी, आज तो बातों बातों में बहुतों को उनकी औकात दिखा गये :)
पंडित जी, आज तो बातों बातों में बहुतों को उनकी औकात दिखा गये :)
मजेदार चिंतन और उससे भी मजेदार चिंतन पर मिले कमेंट्स.
बहुत बढ़िया!
शुभकामनाएँ!!
जनाब शर्मा साहेब/ मौ सम कौन जी नें बिल्कुल दुरुस्त फरमाया कि आप सच में गुरू आदमी हैं! इस 'कुक्कुर' चिन्तन के तो क्या कहने! बेहतरीन! :)
आज पता चला कि कुत्ते भी किसी बढ़िया पोस्ट का हिस्सा बन सकते है|
भय बिनु होय न प्रीति - खुद भी डरे हैं और दूसरों को डराने के अलावा कोई साधन पता ही नहीं है - क्या करेंगे।
कुत्तों को भौंकने दीजिए सर जी
आप तो बस अपना चिन्तन जारी रखिये
बहुत अच्छा
अब इस बात को जानना आसान तो नहीं है ... पर हाँ विज्ञानं कभी न कभी इतनी तरक्की कर लेगा ...
हम जितना इन पर ध्यान देंगे वो उतना ही बकते जायेंगे इनका एक ही इलाज है की इन पर ध्यान ही ना दिया जाये |
अच्छा लगा पढ़ कर
वत्स साहब, शायद उधर से गुजरने वाले हरेक से यह कह रहा हो ' कुत्ते सुबह-सुबह क्या मैदान जा रहा है, मुझे भी ले चल :)
ासल मे कुत्ता आदमी की फितरत जानता है कि ये जीव किसी पर रहम नही करता इसका कोई भरोसा नही कहीं ये मुझ से छू न जाये। इस लिये भौंकता है उसे पास आने से डराता है। गहरा चिन्तन। शुभकामनायें।
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