जैसा कि आप सब लोग जानते हैं कि हिन्दी ब्लागर्स को आ रही समस्यायों को देखते हुए पिछले दिनों हमने आप लोगों की सहायतार्थ "चिट्ठाद्योग सेवा संस्थान" नाम से एक कुटीर उद्योग का शुभारंभ किया था। जिसके पीछे हमारा एकमात्र यही उदेश्य रहा है कि इसके जरिये हिन्दी चिट्ठाकारों को पोस्ट लेखन में लगने वाले शारीरिक एवं मानसिक श्रम तथा कीमती समय के अपव्यय से मुक्ति दिलाई जा सके। साथ ही प्रतिभा के धनी निम्न एवं मध्यमवर्गीय चिट्ठाकारों को कुछ अतिरिक्त कमाई का मौका देकन उन्हे आर्थिक संबल प्रदान किया जा सके। प्रभु की कृ्पा एवं आप लोगों के योगदान से कुछ हद तक हम इन दोनों ही उदेश्यों की पूर्ती में सफल होते जा रहे हैं। यदि आप लोगों का सहयोग इसी प्रकार मिलता रहा तो निकट भविष्य में ये आपका अपना "चिट्ठाद्योग सेवा संस्थान" सफलता के नित नये आयाम छूता चला जाएगा----ऎसा हमारी अन्तरात्मा का कहना है, और कहते हैं कि आत्मा कभी झूठ नहीं बोलती :)
जैसा कि हमने प्रारम्भ में ही कहा था कि आप लोगों को प्रेरित करने के लिए, इस संस्थान की अमूल्य सेवाएं लेने वाले हमारे सम्मानीय ग्राहक समय समय पर अपने अनुभवों को आप लोगों से साँझा करते रहेंगें। आज
हमारे सम्मानीय ग्राहक श्री राज भाटिया जी इस संस्थान से जुडने के पश्चात के अपने अनुभवों को आप लोगों से बाँटने के उदेश्य से हमारे बीच उपस्थित हुए हैं। आईये उन्ही से जानते हैं कि हमारी सेवाऎँ लेने से उनके ब्लागिंग जीवन पर कैसा प्रभाव रहा:--------
भाटिया जी उवाच:- पहले मैं भी आप ही की तरह बहुत परेशान रहा करता था। कुछ नया लिखने के लिए दिमाग में आयडिया ही नहीं आ पाता था। मैने बहुत से उपाय किए जैसे कि हर रोज सुबह उठकर पहले तो नियमित रूप से "सरस्वती चालीसा" का पाठ करना। लेकिन उससे भी कोई फायदा नहीं होता दिखाई दिया तो ये सोचकर छोड दिया कि जितना समय रोज देवी सरस्वती को मनाने में लगता है, उतने समय में तो मैं दस ब्लागों पर जाकर टिप्पणी कर सकता हूँ---जिसका कि मुझे कुछ फल भी मिलेगा। उसके बाद मैने कुछ दिनों तक हर रोज दूध में "बादाम रोगन" डालकर पीना शुरू किया। लेकिन उससे भी फायदा तो क्या खाक होना था, उल्टे इस मँहगें बादाम रोगन नें हाथ जरूर तंग कर दिया। जब मैं हर ओर से निराश परेशान हो चुका था ओर ब्लागिंग छोडने का पूरी तरह से मन बना चुका था कि तभी अचानक मुझे " चिट्ठाकार सेवा संस्थान" के बारे में पता चला। सच मानिये, जिस दिन से मैने "चिट्ठाकार सेवा संस्थान" की सेवाएं ली हैं तो मानो मेरी तो जिन्दगी ही बदल गई। अब न तो पोस्ट लिखने का कोई झंझट ओर न ही कैसी भी कोई परेशानी। अब मैं आराम से अपना सारा समय दूसरे के चिट्ठों को पढने ओर उन पर टिप्पणियाँ करने में लगाता हूँ। बदले में मुझे मिलता है भरपूर मानसिक आराम ओर अपने ब्लाग पर ढेरों टिप्पणियाँ। मैं तो कहता हूँ कि अगर आप भी अपनी ब्लागिंग लाईफ को सुधारना चाहते हैं तो आज ही "चिट्ठाकार सेवा संस्थान" की सेवाएं ले लीजिए------ओर मेरी तरह आराम से मजे करिए।
अब मिलते हैं हमारे अगले सम्मानीय ग्राहक श्री समीर लाल "उडनतश्तरी" जी से। जानते हैं कि चिट्ठाद्योग सेवा संस्थान की सेवाऎं लेने से उनके ब्लागिंग जीवन में क्या प्रभाव पडा । चलिए छोडिए....बहुत हो गया, इनके अनुभव फिर किसी ओर दिन सुन लेंगें :-)
विशेष सूचना:- बहुत जल्द ही संस्थान द्वारा काव्य,लेख,कहानी,गजल,कार्टून,हास्य-व्यंग्य इत्यादि रचनाओं के निर्माण हेतु श्रमजीवी विद्वानों, कवियों,गजलकारों,कार्टूनिस्टों की ठेके पर भर्ती हेतु विज्ञापन प्रकाशित किया जाएगा। इच्छुक प्रार्थी आवेदन हेतु तैयार रहें......:-)
लेबल:- "फाग के रंग" :-)
17 टिप्पणियां:
क्या मैं भी इससे जुड़ सकता हूं .........
बहुत जोरदार आईडिया है यह पहले ही दिन से. हमको भी कोई रोजगार का सुअवसर दिलवा दिजिये, बडी मेहरवानी होगी.
रामराम.
जय हो बाबा मौजी राम वानप्रस्थी की।
पहले दिहाड़ी तय हो जाए तो आएं।:)
पंडित जी .... हमने तो पहले से ही अर्जी भेर रखी है आपके पास ... अब भाटिया जी के अनुभव से लग रहा है अच्छा किया जो पहले से ही बुक कर लिया नही तो पता नही अपना नंबर आता भी या नही .... और हाँ ... हम भी विगयापन की प्रतीक्षा कर रहे हैं ... बुढ़ापे का जुगाड़ तो हो ही जाएगा ....
इतनी सुन्दर सेवा संस्था खोलने के लिये आपको बधाई!
हमारे लिख्खाड़ानन्द जी ने भी शीघ्र ही चिट्ठाद्योग सेवा संस्थान की सेवाएँ लेने का निश्चय कर लिया है!
फ्रेंचाइजी देने के बारे में क्या ख्याल है?
अनुभव बढिया रहा भाटिया जी का
दिल्ली में हम ऐसा ही एक "चिट्ठाकार सेवा संस्थान" खोलने पर विचार कर रहें है
आपको हमारे साथ गठंबधंन करना हो तो बता दिजियेगा
वाह्! मजा आ गया. पंडीत जी हमें तो आप बस ग्राहक ही बना लीजिए, लेकिन पैसे हमारे पास नहीं है. उधार खाते में लिख लीजिएगा :)
वत्स जी हमे तो बताया ही नही इसके बारे मे क्या हमे भी इस मे भर्ती करेंगे? मगर फीस वीस नही देंगे ---- चलो आज ही अपनी कुन्डली भेजती हूँ ----- बहुत अच्छा ,मनोरंजक लगा आपका ये प्रयास तभी तो इतने दिन से राजयोग की अगली किश्त नज़र नही आयी। मगर मेरा राजयोग तो लग ही गया । बहुत बहुत बधाई
क्या मैं भी इससे जुड़ सकता हूं ..सदस्यता के लिए कोई फार्म वार्म हैं का .... अच्छा गृह उद्योग है ....
हम भी लाईन में खड़े है चिट्ठाद्योग के लिये ।
इस संस्थान की अभिवृद्धि की कामना करता हूँ!
मुझे भी भर्ती कर तो, मैंने भी हाथ खड़ा कर रखा है :)
चिट्ठाद्योग सेवा संस्थान वालो मेरे कारण देखा आप के कितने ग्राहक बन गये अब निकालो २५% मेरी कमीशन सब मिला कर १० लाख ५४ हजार ९७३ रुपये.
चिट्ठाद्योग सेवा संस्थान जिन्दा वाद
आपका नुस्खा अपनाते ही हम में भी बहुत सुधार आया है। पहले टिप्पणी नहीं मिलने पर चिडचिडा जाते थे लेकिन अब शान्ति बनी रहती है। बहुत ही आनन्द के साथ दिन निकल रहे हैं। बादाम वगैरह के सारे ही खर्चे बच गए हैं। आपका आभार।
पण्डी जी,
इत्थे जाट भी त्यार है.
आइडिया ही नै उद्योगों का जनक सदा से रहा है. चलिए एक नया उद्योग कुटीर उद्योग की श्रेणी में जुड़ गया, ये बात अलग है कि अब तो कुटीर के दर्शन ही नहीं होते,.............
हार्दिक आभार.
चन्द्र मोहन गुप्ता
एक टिप्पणी भेजें