मुझे लग रहा है कि अब इस ब्लागजगत में मठाधीशी, अनामी-बेनामी ब्लागर, तेरा धर्म-मेरा धर्म जैसी टपोरपंथी, अन्याय, वगैरह से लडने की शक्ति बिल्कुल ही चूक गई है, तभी तो कितने दिन हो गए ऎसी कोई धमाकेदार सी किसी को गरियाती हुई कोई पोस्ट नहीं दिखाई पडी. विश्वास नहीं हो रहा कि ये वही बीते कल वाला ब्लागजगत ही है या कि हम ही गलती से किसी ओर जगह चले आए हैं. हमें भी मामला कुछ समझ में नहीं आ रहा कि आखिर बात क्या है. माहौल में ये अजीब सी खामोशी क्यूं छाई हुई है भाई. इत्ते दिन बीतने के बाद भी कहीं से ऎसी कोई पोस्ट न पढने को मिले तो इसका मतलब ये समझा जाए कि समूचा ब्लागजगत अब समझौतावादी हो गया है. क्या आप लोगों नें भी देश की जनता की तरह बिगडे हालातों से समझौता करना सीख लिया है. उस गरीब जनता की तरह, जिसके लिए कि आशा की कोई भी किरण किसी भी क्षितिज पर शेष न रह पाई है.
अरे भाई! ऎसा कैसे चलेगा.....हमें तो ये खामोशी कुछ चुभने सी लगी है. लग ही नहीं रहा कि ये वही ब्लागजगत है. भाई कम से कम मन को इतना तो अहसास होते ही रहना चाहिए कि हम हिन्दी के ब्लागर हैं.......:-)
38 टिप्पणियां:
भाईसहाब, मैंने अभी-अभी बीज बोये है अपने ब्लॉग पर, देखते है कैसी फसल उगती है !:)
वो तो ठीक हैं जी पर वो जो बहस जिसका आप जिक्र कर रहे हो फिर काफी लंबी खिंच जाती हैं
आने वाले तूफान से पहले की खामोशी तो नही है यह....:))
गोदियाल साहब ने आपका काम पूरा कर दिया हैं
आगे भगवान की मर्जी
अच्छा व्यंग / ये सब संभव हुआ है आपके जैसे सुलझे हुए और अच्छी सोच रखने वाले ब्लोगरों के सार्थक प्रयास से / बिलकुल सही कहा आपने हमारी शालीनता ही हमारी हिंदी भाषी होने का पहचान है / आपका सहयोग अपेक्षित है /
वाह गुरू जी आप भी न जूता बिल्कुल ही भिगो कर मारते हैं.मान गए आपको पंडित जी. एकदम सालिड पंच. :-))
सब खुद से ही बोल रहे है,
अपमे मन को टटोल रहे है.....
अन्दर ही अन्दर खुद को तोल रहे है,
लगा अपनी आत्मा का मोल रहे है,
ऐसे में भला ओरो से बोले कौन....
शायद इसलिए है सारे मौन...
सभा सारी आपस में नजरे चुराए,
तिनका दाढ़ी में जान सब दाढ़ी खुजाये,
हमाम में सब नंगे पर्दा कौन हटाये,
इन्सानियत शायद जिन्दा है सो सब शर्माए,
धरती तो फट जाए पर समाये कौन,
शायद इसीलिए है सारे मौन...
कुंवर जी,
बढ़िया पोस्ट!!
ब्लॉगरगण भी बोर हो जाते हैं. बिना सही परिणामों के कोई कब तक इस तरह के झमेले मोल लेता रहेगा?
aapse sahmat !!!!!!!
अभी व्यस्त हूं… :) :)
@सुरेश चिपलूनकर जी,
भाई जल्दी से फुर्सत मे आईये...अब तो ये शान्ती कुछ असहनीय सी होने लगी है :-)
कुछ टांग खेंचू ब्लॉगर गर्मी की छुट्टी बिताने गए है |
घबराईये नहीं यह तूफ़ान के पहले की नीरवता है
यह ब्लागजगत में हुए सकारात्मक परिवर्तन का प्रभाव है.
क्या कहा समझौता? हमारा ब्लॉग देखा?
पंडित जी आप की इच्छा आज पुरी हो गई है आज ही दो लेख पढ कर ऎसा भागा कि आप के ब्लांग पर ही आ कर रुका... तो जल्दी जाइए गोदियाल साहब की पोस्ट पर आप को वहा आप का मन पसंद खजाना मिलेगा....:)
vatsa ji ....jad mudde kam hote hai to yahi sab hota hai ...waise bhi shanti se darr lagta hai kyun ki tuphan ke pahle bhi sab shant ho jata hai ...
थोड़ा तो आराम करने दो भाई..:)
shanti bhi mann ashaant kar deti hai kya ?
गोदियाल साहब ने बीज बो दिए और आपने खाद-पानी दे दी है अब भगवान् मालिक है :>)
Kunwar ji ki kavita achhi lagi .
चलिये इसी बात पर चर्चा कर लेते हैं
भले ही हम हिन्दी के ब्लॉगर हों मगर भक्त तो अंग्रेजी के ही रहेंगे!
बहुत बढ़िया साहिब!
हम तो चले भानजे की शादी में!
3 दिन के बाद भेंट होगी!
डा०साहब के दुश्मनों की तबियत कुछ नासाज चल रही है आजकल..
सही फ़रमाया वत्स साहब,
आपकी चिन्ता जायज है। सच में ऐसा लग रहा है कि ब्लॉग की दुनिया धीरों वीरों से हीन हो गई है। पर हमें पूरा विश्वास है कि कोई न कोई अतिवीर फ़िर से अवतार जरूर लेगा।
चलें, जरा गोदियाल साहब के यहां भी हाजिरी लगा लें, सुना है कि कुछ स्कोप है वहां पर :)
आशा का दामन मत छोड़िये पंडित जी।
पंडित जी ,
ब्लोगजगत की हस्तरेखा , मस्तक रेखा का अध्य्यन करके कुछ विश्लेषण भी प्रस्तुत किया जाए जी ...............
bahut achchhaa likhe pandit jee mahaaraaj
ये उतावली क्यों है इतनी आपको............
कोई ड्रामा नया फिर शुरू होने को है..........
इंतज़ार कीजिये तब तक.......
आपको बधाई आज तक
यह तूफ़ान से पहले की ख़ामोशी है.
आप भी व्यंग्य लिखने में बहुत कुशल हैं..:)
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रही बात कविताओं को समझने की ..तो मेरी आज की कविता में 'रेखाओं से अर्थ भाग्य 'है और रेखाओं को खुदगर्ज़ इसलिए कहा क्योंकि वे किसी और को.. हाथों में,,, अपने अलावा रहने नहीं देतीं!
---अब इतनी कवितायेँ पढ़ पढ़ कर आप भी कवितायेँ समझना क्या लिखना भी शुरू कर देंगे.
एक कविता तो लिखी भी थी पहले आप ने?
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एक बात बताना चाहती थी आप ने एक प्रार्थना गीत -इतनी शक्ति हमें देना दाता-का सुझाव दिया था..याद होगा..उसे मैं ने एक साईट पर नवंबर में लगाया था..जहाँ उस के अब तक उस एक ही साईट पर 'चार हज़ार से ज्यादा 'डाउनलोड हो चुके हैं..जबकि बाकि और सब अधिकतम २००-३००--तक पहुंचे हैं.
खुशी हुई क्योंकि उम्मीद नहीं थी कि उस गीत को इतना पसंद किया जायेगा.
--आप का ईमेल नहीं है इसलिए यहाँ टिप्पणी में बता रही हूँ..उस सुझाव के लिए आप का बहुत बहुत धन्यवाद.:)
व्यंग्य ठीक है पर एक औचित्यहीन पोस्ट.. क्षमा करें..
हमने समझौतावादी होकर ही अपने देश को चार हिस्सों में बंटने का तांडव देख है क्या अब पांचवें विबाजन को देखने के लिए हम त्यार हो चुके हैं अगर नहीं तो उठाओ कलम और शुरू हो जाओ गद्दारों को वेनकाब करना।
अमन चैन शांति ठीक नहीं है
आप पंगे लेते रहिए,मौज किजिए:)
पंडित जी दिल्ली बैठकी में सब तय हो चुका है, एक रणनीति के तहत सभी समझौतावादी बने हैं, अभी धमाका होने वाला है।
:)
हम अजय झा जी से सहमत्।॥सब ग्रहों की बात है। शनि को आने दीजिए फ़िर तांडव शुरु हो जाएगा
सही कहा ... मान तो हमारा भी नही लग रहा .. कुछ मसाला आया नही कुछ दिनों से ब्लॉग पर ...
क्या हुवा बंधु ... जागो .. जागो सोने वालो जागो .... अच्छा लगा देख कर गौदियाल जी जाग चुके हैं .....
वैसे मसाला तो नही .. पर कुछ तो हम भी अभी अभी ब्लॉग पर डालके आए हैं ...
पंडित जी ये आप किस तरह कि पोस्ट देने लगे, क्यों अपना और लोगों का समय ख़राब कर रहे हैं!
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